April 25, 2025


सुवर्ण कूटं रजताभिकूटं, माणिकयकूटं मणिरत्नकूट्म।
अनके कूटं बहुवर्ण कूटं, श्री चित्रकूटं शरणं प्रपद्य।।

चित्रकूट मंदाकिनी नदी के किनारे  बसा भारत के सबसे प्राचीन तीर्थस्थलों में से एक है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में 38.2 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला शांत और सुन्दर चित्रकूट, प्रकृति की अनुपम देन है। चारों ओर से विंध्याचल पर्वत श्रृंखलाओं और वनों से घिरे चित्रकूट को अनेक आश्चर्यो की पहाड़ी कहा जाता है।

 ऋषि भारद्वाज की सलाह पर चित्रकूट आये श्री राम 

प्राचीन काल से ही चित्रकूट का एक विशिष्ट नाम और पहचान है।इस स्थान का पहला ज्ञात उल्लेख  ‘ वाल्मीकि रामायण ‘ में है, जो सबसे पहला महाकाव्य माना जाता है।  महर्षि वाल्मीकि चित्रकूट को एक महान पवित्र स्थान के रूप में चित्रित करते हैं, जो महान ऋषियों द्वारा बसाया गया है।  ऋषि भारद्वाज और वाल्मीकि दोनों इस सिद्ध तीर्थ  क्षेत्र के बारे में प्रशंसा करते हुए  श्रीराम को अपने वनवास की अवधि में इस स्थान को  अपना निवास बनाने के लिए सलाह देते हैं, क्योंकि यह स्थान  सभी इच्छाओं पूर्ण करने और  मानसिक शांति देने वाला है । ‘ रामोपाख्यान ’ और महाभारत के विभिन्न स्थानों पर तीर्थों के विवरण में चित्रकूट एक को एक विशिष्ट स्थान प्राप्त है। यह ‘अध्यात्म रामायण’ और ‘बृहत् रामायण’ चित्रकूट की  आध्यात्मिक और प्राकृतिक सुंदरता को प्रमाणित करते हैं। लेखकों के अनुसार बाद में चित्रकूट और इसके प्रमुख स्थानों का वर्णन सोलह कंटो वर्णित है। राम से संबंधित पूरे भारतीय साहित्य में इस स्थान को एक अद्वितीय गौरव प्रदान किया गया है। 

तुलसी दास को श्री राम के दर्शन 

संस्कृत और हिंदी कवियों ने चित्रकूट का बहुविधि वर्णन किया है। महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य ‘रघुवंश’ में इस स्थान का सुंदर चित्रण  किया है। वह यहाँ के आकर्षण से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने मेघदूत में अपने यक्ष के निर्वासन का स्थान चित्रकूट पर्वत यानी  रामगिरि  को बनाया। हिंदी के संत-कवि तुलसीदास जी ने अपनी  सभी प्रमुख कृतियों – रामचरित मानस, कवितावली, दोहावली और विनय पत्रिका में इस स्थान का अत्यंत आदरपूर्वक उल्लेख किया है। अंतिम ग्रन्थ में कई छंद हैं, जो तुलसीदास और चित्रकूट के बीच एक गहन व्यक्तिगत संबंध प्रदर्शित करते हैं। अपने जीवन का काफी हिस्सा उन्होंने यहाँ भगवन राम की पूजा और उनके दर्शन की लालसा में व्यतीत किया। यहाँ उनकी उपलब्धियों का एक उल्लेखनीय पल माना जाता है जब हनुमान जी के माध्यम से  उन्हें अपने  आराध्य श्री राम के दर्शन प्राप्त हुए। उनके मित्र, प्रसिद्ध हिंदी कवि रहीम यानी अब्दुर रहीम खान ए खाना जो  सैनिक, राजनीतिज्ञ, संत, विद्वान, कवि, और  अकबर के नव-रत्नों में से एक थे ने यहां कुछ समय बिताया था। 

चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध नरेस।

जापर विपदा पड़त है, सो आवत यहि देस॥

 प्रणामी संप्रदाय के बीटक साहित्य के अनुसार, संत कवि महामति प्रणनाथ ने यहां अपनी दो पुस्तकों- छोटा कयामतनामा नामा और बड़ा कयामतनामा को लिखा था। वह वास्तविक स्थान, जहाँ प्राणनाथ रहे और जहाँ उन्होंने कुरान की व्याख्या और श्रीमद्भागवत महापुराण से इसकी समानताओं से सम्बंधित कार्य किये।

इसी पुण्य तीर्थ पर हनुमान जी की कृपा से तुलसीदास को  रामघाट में अपने आराध्य प्रभु श्री राम के दर्शन  हुए  हैं- 

 चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीड़ । 

तुलसी दास चन्दन घिसें तिलक देत रघुवीर ।।

तीर्थों का तीर्थ है चित्रकूट 

चित्रकूट सभी तीर्थों का तीर्थ है। हिंदू आस्था के अनुसार, प्रयागराज  को सभी तीर्थों का राजा माना गया है; किन्तु चित्रकूट को उससे भी ऊंचा स्थान प्रदान किया गया है। किवदंती है की जब अन्य तीर्थों की तरह  प्रयागराज चित्रकूट  नहीं पहुंचे तब प्रयागराज को चित्रकूट की उच्चतम  पदवी के बारे में बताया गया तथा प्रयागराज से अपेक्षा की गयी की वह चित्रकूट जाएँ, इसके विपरीत की चित्रकूट यहाँ आयें। ऐसी भी मान्यता है कि प्रयागराज प्रत्येक वर्ष पयस्वनी में स्नान करके अपने पापों को धोने के लिए आते हैं। यह भी कहा जाता है कि जब प्रभु राम ने अपने पिता का श्राद्ध  किया तो सभी देवी-देवता शुद्धि भोज में भाग लेने चित्रकूट आए। वे इस स्थान की सुंदरता से मोहित हो गए थे। भगवान राम की उपस्थिति में इसमें एक आध्यात्मिक आयाम जुड़ गया। इसलिए वे वापस प्रस्थान करने के लिए तैयार नहीं थे। कुलगुरु वशिष्ठ, भगवान राम की इच्छा के अनुसार रहने और रहने की उनकी इच्छा को समझते हुए विसर्जन यानी प्रस्थान मंत्र को बोलना भूल गए। इस प्रकार, सभी देवी-देवताओं ने इस जगह को अपना स्थायी आवास बना लिया और वहां हमेशा उपस्थित रहते हैं। 

भारतीय साहित्य और पवित्र ग्रन्थों में प्रख्यात, वनवास काल में साढ़े ग्यारह वर्षों तक भगवान राम, माता सीता तथा  अनुज लक्ष्मण की निवास स्थली रहा चित्रकूट, मानव हृदय को शुद्ध करने और प्रकृति के आकर्षण से पर्यटकों को आकर्षित करने में सक्षम है। चित्रकूट एक प्राकृतिक स्थान है जो प्राकृतिक दृश्यों के साथ साथ अपने आध्यात्मिक महत्त्व के लिए प्रसिद्ध है। पर्यटक यहाँ के खूबसूरत झरने, चंचल युवा हिरण और नाचते मोर को देखकर रोमांचित होता है, तो एक तीर्थयात्री पयस्वनी-मन्दाकिनी में स्नान कर और कामदगिरी की परिक्रमा कर अभिभूत होता है। 

प्राचीन काल से चित्रकूट क्षेत्र ब्रह्मांडीय चेतना के लिए प्रेरणा का एक जीवंत केंद्र रहा है। हजारों भिक्षुओं, साधुओं और संतों ने यहाँ उच्च आध्यात्मिक स्थिति प्राप्त की है और अपनी तपस्या, साधना, योग, तपस्या और विभिन्न कठिन आध्यात्मिक प्रयासों के माध्यम से विश्व पर लाभदायक प्रभाव डाला है। प्रकृति ने इस क्षेत्र को बहुत उदारतापूर्वक अपने सभी उपहार प्रदान किये हैं, जो इसे दुनिया भर से तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को आकर्षित करने में सक्षम बनाता है। अत्रि , अनुसूया, दत्तात्रेय, महर्षि मार्कंडेय, सरभंग, सुतीक्ष्ण और विभिन्न अन्य ऋषि, संत, भक्त और विचारक सभी ने इस क्षेत्र में अपनी समय  व्यतीत किया है।  आज भी यहाँ की विभिन्न गुफाओं और अन्य क्षेत्रों में तमान विभूतियाँ साधना  रत हैं।  इस क्षेत्र की एक आध्यात्मिक सुवास  है, जो पूरे वातावरण में व्याप्त है और यहाँ के प्रत्येक दिन को आध्यात्मिक रूप से जीवंत बनाती है।

आज भी यहां आने वाला  पर्यटक जब यहां की  प्राकृतिक छटा , गुफाओं, आश्रमों और मंदिरों के वैभव को देखता  है तो पवित्र और आध्यात्मिक साधना में लगे ऋषियों के साथ वह अनजाने में ही खुद को जोड़ लेता है।  एक अलग दुनिया के आनंद को प्राप्त करता है। देश विदेश के सभी हिस्सों से हजारों तीर्थयात्री और पर्यटक हर दिन चित्रकूट दर्शन को आते हैं। 

तुलसीदास की जन्मभूमि 

मंदाकिनी नदी के किनार बने अनेक घाट विशेष कर रामघाट और कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा के लिए   पूरे साल श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। अमावस्या के दिन यहाँ विशेष महत्व माना जाता है माना जाता है कि भगवान राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ अपने वनवास के चौदह वर्षो में साढ़े ग्यारह वर्ष चित्रकूट में ही बिताए थे। इसी पुण्य तीर्थ  पर ऋषि अत्रि और सती अनुसूया  ने ध्यान लगाया था। ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने चित्रकूट में ही सती अनसूया के आश्रम मैं बाल स्वरूप धारण किया था । चित्रकूट से 35 की दूरी पर किलोमीटर पर स्थित यमुना नदी के तट पर राजापुर गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म स्थान है । यहां  रामचरितमानस की मूल प्रति रखी हुई है।  चित्रकूट से प्रयागराज जाने वाले सड़क मार्ग पर  वाल्मीक आश्रम 18  किलोमीटर दूर है , पर्टयन की दृष्टि से यह महत्त्व पूर्ण स्थल है। 

आदि अनादि तीर्थ है चित्रकूट।  इस क्षेत्र के विभिन्न स्थानों और स्थलों की समृद्ध और विविध सांस्कृतिक, धार्मिक, ऐतिहासिक और पुरातात्विक विरासत का प्रतीक है। प्रत्येक अमावस्या को यहाँ विभिन्न क्षेत्रों से लाखों श्रृद्धालु एकत्र होते हैं। सोमवती अमावस्या, दीपावली, शरद-पूर्णिमा, मकर-संक्रांति और राम नवमी यहाँ के  विशेष समारोहों वाले अवसर हैं।इस परम पावन धाम में आप भी पधारिये , तीर्थों के तीर्थ चित्रकूट में आपका स्वागत हैं। 

# शीघ्र प्रकाशित किताब ‘ आदि अनादि चित्रकूट से ‘