
कृति कथा : सृजन यात्रा
– टिल्लन रिछारिया
इस प्रतिष्ठित ग्रंथ की सृजन यात्रा का शुभारंभ होता है 21 दिसंबर 2021 को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया , नई
दिल्ली में आयोजित ‘जल संवाद’ के एक कार्यक्रम से । परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती एवं पतंजलि योगपीठ हरिद्वार के संस्थापक सचिव आर्युवेदाचार्य बालकृष्ण जी के सान्निध्य में देश के प्रकृति चिंतकों की मौजूदगी इस अवसर पर उल्लेखनीय रही । प्रकृति , जल , जंगल , कृषि ,नदी , पर्वत , गौवंश और मानव चर्चा के क्रेंद्र में रहे ।सरकार और समाज की प्रवृत्तियों की गहन विवेचना हुई ।
इस अवसर पर विशिष्ट वक्ताओं में उज्जैन के अंकिठग्राम सेवाधाम आश्रम के संस्थापक संचालक सुधीर भाई गोयल ने अपनी मानवसेवी संस्था की मार्मिक तस्वीर प्रस्तुति की । सुधीर भाई जलग्राम जखनी के जलयोद्धा उमाशंकर पांडेय के आमंत्रण पर इस आयोजन में आए थे ।
उज्जैन की विरासत
गुरू सांदिपनी, महाकवि कालिदास और भगवान श्री कृष्ण की शिक्षा स्थली विश्व के प्राचीनतम ज्योर्तिलिंग महाकाल की कुंभ नगरी उज्जयिनी के पश्चिमी द्वार पर गंभीरबाँध के किनारे बिल्वकेश्वर महादेव के चरणों में बसा है सेवाधाम आश्रम। जो निरन्तर 3 दशकों से निराश्रित- मरणासन्न, मनोरोगियों, शारीरिक मानसिक दिव्यांग बाल-वृद्ध-युवाओं की सेवा स्थली है जहाँ आने वाले हर उस व्यक्ति को जो बेसहारा होता है भगवान के स्वरूप में स्वीकार किया जाता है।
अंकितग्राम सेवाधाम आश्रम एक अंतर-धार्मिक गैर सरकारी संगठन है। जाति, पंथ, उम्र, लिंग या किसी भी भेदभाव के बिना बेघर, अलग-अलग विकलांग, मानसिक रूप से बीमार, मरने वाले और निराश्रित लोगों को जीवन भर आश्रय और पुनर्वास प्रदान करता । यह एक स्वैच्छिक संगठन है जो जन सहयोग पर चल रहा है।
बेसहारों का सहारा
उज्जैन पुण्य सलिला क्षिप्रा के किनारे बसा धर्मप्राण नगर है। उज्जैन महाराजा विक्रमादित्य के शासन काल में उनके राज्य की राजधानी थी। यह कालिदास की नगरी भी है। उज्जैन में हर 12 वर्ष के बाद ‘सिंहस्थ कुंभ’ का मेला जुड़ता है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ‘महाकालेश्वर’ इस नगरी के अधिष्ठाता है। उज्जैन के अन्य प्राचीन प्रचलित नाम हैं- ‘अवन्तिका’, ‘उज्जैयनी’, ‘कनकश्रन्गा’ आदि। उज्जैन मन्दिरों का नगर है। यहाँ अनेक तीर्थ स्थल है।
1989 से सेवाधाम उन लोगों का घर रहा है,जिन्हें उनके परिवारों या उनके समाज ने छोड़ दिया था।ऐसे लोगों को बिना जाति, धर्म के भेदभाव के सेवाधाम में आश्रय मिलता है, और सब एक विशाल परिवार जैसे वातावरण में रहते हैं। आश्रम ने 5000 से अधिक पीड़ित लोगों को नया जीवन पाने मदद की है। लगभग 1500 लोगों का पुनर्वास किया गया है ।
अपने भावपूर्ण उद्बोधन में सुधीर भाई आभार व्यक्त करते हुए बताते हैं कि सिंहस्थ 2016 के समापन के बाद कैसे स्वामी चिदानंद सरस्वती जी आदर सहित आश्रम के लिए उपयोगी साजो सामान भेंट कर आये थे। सिंहस्थ 2016 के उज्जैन के अपने प्रवास की तमाम अनुभूतियाँ हैं।
उज्जैन का अपना वैभव है
महाभारत व पुराणों में उल्लेख है कि वृष्णि संघ के कृष्ण व बलराम उज्जैन में गुरु संदीपन के आश्रम में विद्या
प्राप्त करने आये थे। कृष्ण की पत्नी मित्रवृन्दा उज्जैन की राजकुमारी थीं और उनके दो भाई ‘विन्द’ एवं ‘अनुविन्द’ ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की तरफ़ से युद्ध किया था। उज्जैन का एक अन्य अत्यंत प्रतापी
राजा हुआ है, जिसका नाम चंडप्रद्योत था। भारत के अन्य राजा भी उससे ड़रते थे। ईसा की छठी सदी में वह उज्जैन का शासक था। उसकी पुत्री वासवदत्ता एवं वत्स राज्य के राजा उदयन की प्रेम कथा इतिहास में बहुत प्रसिद्ध है। बाद के समय में उज्जैन मगध साम्राज्य का अभिन्न अंग बन गया था।
कालिदास की प्रिय नगरी उज्जयिनी के इतिहास प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों में महाकवि कालिदास प्रमुख थे। कालिदास को उज्जयिनी अत्यधिक प्रिय थी। इसी कारण से कालिदास ने अपने काव्य ग्रंथों में उज्जयिनी का अत्यधिक मनोरम और सुंदर वर्णन किया है। महाकवि कालिदास सम्राट विक्रमादित्य के आश्रय में रहकर काव्य रचना किया करते थे। कालिदास ने उज्जयिनी में ही अधिकतर प्रवास किया और उज्जयिनी के प्राचीन एवं गौरवशाली वैभव को बढ़ते देखा। पर कालिदास की मालवा के प्रति गहरी आस्था थी। यहाँ रहकर महाकवि ने वैभवशाली ऐतिहासिक अट्टालिकाओं को देखा, उदयन और वासवदत्ता की प्रेमकथा को अत्यन्त भावपूर्ण लिपिबद्ध किया। भगवान महाकालेश्वर की संध्या कालीन आरती को और क्षिप्रा नदी के पौराणिक और ऐतिहासिक महत्त्व से भली-भांति परिचित होकर उसका अत्यंत मनोरम वर्णन किया, जो आज भी साहित्य जगत् कि अमूल्य धरोहर है।
अपनी रचना ‘मेघदूत’ में महाकवि कालिदास ने उज्जयिनी का बहुत ही सुंदर वर्णन करते हुए कहा है कि- “जब स्वर्गीय जीवों को अपना पुण्य क्षीण हो जाने पर पृथ्वी पर आना पड़ा, तब उन्होंने विचार किया कि हम अपने साथ स्वर्ग भूमि का एक खंड (टुकड़ा) भी ले चलते हैं। वही स्वर्ग खंड उज्जयिनी है।” महाकवि ने लिखा है कि- “उज्जयिनी भारत का वह प्रदेश है, जहाँ के वृद्धजन इतिहास प्रसिद्ध अधिपति राजा उदयन की प्रणय गाथा कहने में पूर्णत: प्रवीण हैं। कालिदास कृत ‘मेघदूत’ में वर्णित उज्जयिनी का वैभव आज भले ही विलुप्त हो गया हो, परंतु आज भी विश्व में उज्जयिनी का धार्मिक, पौराणिक एवं ऐतिहासिक महत्त्व है। साथ ही उज्जयिनी ज्योतिष के क्षेत्र में भी प्रसिद्ध है। सात पुराणों में वर्णित प्रसिद्ध नगरियों में उज्जयिनी प्रमुख स्थान रखती है। उज्जयिनी में प्रत्येक बारह वर्षों में सिंहस्थ कुम्भ नामक महापर्व का आयोजन होता है। कुम्भ के पावन अवसर पर देश-विदेश से करोडों श्रद्धालु, भक्तजन, साधु-संत, महात्मा एवं अखाड़ों के मठाधीश प्रमुख रूप से उज्जयिनी में कल्पवास करके मोक्ष प्राप्ति की कामना करते हैं।
मानवसेवी सुधीर भाई का सेवाधाम
आधुनिक काल में पण्डित सूर्यनारायण व्यास , शिवमंगल सिंह सुमन ,व्यंग्यकार शरद जोशी , और
अंकितधाम सेवाग्राम आश्रम के मानवसेवी सुधीर भाई उज्जैन की कीर्ति पताका फहराते रहे हैं।
आज के उज्जैन की पहचान क्षिप्रा , महाकाल, भर्तहरि और सांदिपनि आश्रम से तो है ही, लेकिन
सेवाधाम आश्रम ने भी उसे नई पहचान दी है। इसके संस्थापक – संचालक सुधीर भाई को देखते
ही आपको मदर टेरेसा या बाबा आमटे का स्मरण अपने आप हो आता है। गरीब, पीड़ित और असहाय
मानव की सेवा में समर्पित सुधीर भाई सेवाधाम के पर्याय है। अल्प समय में वे सेवा के ऐसे अनुकरणीय
व्यक्तित्व बनकर उभरे है जो पीड़ित मानव का दुःख दूर करने के लिए चैंबीसो घण्टे कर्मरत रहते है।
सेवाधाम इस अंचल का का ऐसा अनूठा पारमार्थिक प्रकल्प है, जहाँ 700 से ज्यादा बीमार, दुःखी,बेसहारा, विक्षिप्त, अर्द्धविक्षिप्त, एचआईवी पीड़ितों, बलात्कार पीड़िताएं, उनकी संतानें, घरों से निकाल दिये गये वृद्ध पुरुष एवं महिलाएं ना केवल भोजन, वस्त्र एवं आश्रय पा रहे हैं बल्कि विभिन्न प्रकार की कलाएं सीख कर अपने जीवन को एक अर्थ भी दे रहे हैं।
‘मानवसेवी सुधीर भाई की जीवन संकल्पना’ ग्रन्थ का बीजारोपण
कोरोना काल के बाद सुधीर भाई से एक मुलाकात 2021 में गांधी शान्ति प्रतिष्ठान में जलयोद्धा उमाशंकर पांडेय के साथ होती है , बात ‘सुधीर भाई और सेवाधाम’ पर किताब तैयार करने की होती है। 2022 के होलिकोत्सव के दिन हम उज्जैन के सेवाधाम परिसर में हैं। सुने सुनाये सेवाधाम की छवि से विल्कुल ही भिन्न एक जीवंत और उत्सव से सराबोर सेवाधाम के दर्शन होते हैं। 700 से अधिक मानव सम्पदा वाले इस परिवार में बीते चार दिनों में यह पता चलता है कि सेवा सहज कर्म नहीं , बहुत गहरे समर्पण का प्रसाद है …और सुधीर भाई नाम का यह प्राणी ईश्वर की दिव्य अमानत है। इनमें जो जिजीविषा है वह भी ईश्वर की विशेष कृपा है। इनकी पत्नी कांता जी और दो बेटियां , मोनिका और गौरी अपने माता पिता के हर कदम पर सहर्ष समर्पित है। ….पूरा परिसर एक विशाल परिवार है जो विश्वास ,प्रेम और आत्मीयता से रचा बसा है।
सेवाधाम के इस चार दिवसीय प्रवास के बाद फिर यहां आने का अवसर मिलता है जब 16 अप्रैल 2022 को पतंजलि योगपीठ हरिद्वार के संस्थापक-सचिव आर्युवेदाचार्य बालकृष्ण जी ‘
विक्रमादित्य राष्ट्र विभूति सम्मान’ से सम्मानित किया जाता है।
आने वाले वर्षों में सेवाधाम मिसाल बनेगा:आयुर्वेदाचार्य बालकृष्ण
आयुर्वेदाचार्य बालकृष्ण जी अपने उद्बोधन में कहते हैं -मानव सेवा तीर्थ सेवाधाम आश्रम ‘अंकित ग्राम’, में पीड़ित-शोषित और समाज से ठुकराए लोगों की निस्वार्थ सेवा हो रही है यह करना सबसे बड़ा पुण्य कार्य है, इस तरह की परम्पराऐं आगे बढ़ना चाहिए, इस देश को हजारों सुधीर भाई की आवश्यकता है। सुधीर भाई मरकर भी सेवाधाम आश्रम की चैकीदारी करना चाहते है, इससे बड़ी कोई बात नही हो सकती। हिन्दू संस्कृति में सेवा से बड़ा कोई कार्य नही है और यह कार्य सेवाधाम आश्रम में हो रहा है, सेवाधाम आश्रम सेवा करने वाली संस्थाओं का ट्रेनिंग सेंटर बन सकता है। सेवा की अद्भूत मिसाल कायम करने वाले इस आश्रम में दीन – दुखियों की जो सेवा हो रही है उसकी कल्पना आसान नही है, अपना सारा जीवन मानवता की सेवा के लिए अर्पित करना बहुत बड़ा तप है। आज परिवार में बीमार व्यक्ति को तिरस्कृत किया जाता है लेकिन 700 से ज्यादा जिनमें अधिकांश बिस्तर पर है उनकी सेवा का जो कार्य यहां हो रहा है यह अकल्पनीय है, आश्चर्य यह भी है कि सेवा करने वाला थक नही रहा है, सुधीर भाई जैसे लोग इतिहास बनाते है, आने वाले वर्षों में सेवाधाम मिसाल बनेगा।
इस कार्यक्रम के दौरान यह अंदाज़ लगा कि सुधीर भाई केवल सेवाभावी ही नहीं आदर्श आतिथ्य सेवी भी हैं। उल्लास,उत्साह और उत्सव का जो आनंद बरसा वह अद्वितीय रहा।
अंकित ग्राम सेवाधाम आश्रम के परोक्ष समाजसेवी मास्टर अंकित गोयल के 38वें अवतरण दिवस पर 31वाँ 31 दिवसीय वर्षा मंगल महोत्सव 22 जुलाई 2022 को राष्ट्रीय संस्कार-सेवा-मित्र मिलन का शुभारंभ विश्व के जाने-माने अहिंसा, शांति और सद्भावना के अग्रदूत, अहिंसा विश्व भारती के संस्थापक आचार्य डाॅ. लोकेश मुनिजी के मुख्य आतिथ्य में हुआ। यह महोत्सव पूरे एक माह 22 अगस्त तक चला। प्रति वर्षों की भांति इस वर्ष भी अंकितग्राम सेवाधाम सांस्कृतिक मिलन महोत्सव का आयोजन हुआ । इस बार इस महोत्सव को ‘ पर्यावरण संस्कार पर्व ‘ के रूप में मनाया गया
सेवाधाम आश्रम जैसी मानव सेवा में रत संस्था आज तक नही देखी:आचार्य डाॅ. लोकेश मुनि
आचार्य डाॅ. लोकेश मुनि जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि -मैंने पूरे विश्व का भ्रमण किया है किन्तु ‘अंकित ग्राम’, सेवाधाम आश्रम जैसी मानव सेवा में रत संस्था आज तक नही देखी। मैं सुबह से यहां हूं और सम्पूर्ण आश्रम को देखा यहां निवास करने वालों से मुलाकात की मुझे सेवाधाम के लिए कोई उपमा या वर्णन नही मिल रहा है जिससे मैं इसके बारे में बता सकू। आईए हम सब मिलकर सुधीर भाई के सेवा कार्यों में साथ दें। उन्होंने कहा कि यदि मैं सेवाधाम न आता तो जीवन की एक बडी उपलब्धि से अपरिचित रहता।
सेवाधाम किसी तीर्थ से कम नही:आरिफ मोहम्मद खान
-माननीय राज्यपाल, केरल ने ‘ सम्राट राजा विक्रमादित्य राष्ट्र सेवी सम्मान’से सम्मानित होने के बाद 18 अगस्त 2022 के सम्मेलन में अपने उद्बोधन में कहा कि – सुधीर भाई सेवाधाम आश्रम की आत्मा है, मैं यहां उज्जैन में तीन महिने पहले आया था तब महाकाल बाबा के दर्शन के बाद पुनः आज सेवाधाम आने से मेरी यात्रा सफल हुई। भगवान के दर्शन के बाद जो भाव इंसान में पैदा होने चाहिए उसकी अभिव्यक्ति सेवाधाम आश्रम है।
कोई भी सच्चे भाव से एक भी दीन दुखी की सेवा करता है वह जगह दिव्य बन जाती है लेकिन सेवाधाम में तो सुधीर भाई असख्ंय दीन दुखियों की सेवा कर रहे है यह स्थान किसी तीर्थ से कम नही है। सेवाधाम आश्रम भारतीय संस्कृति को चरितार्थ कर रहा है। ऐसे आश्रम भारत की सभ्यता, संस्कृति और आस्था के प्रतिक है। उन्होंने श्री गीता, वेद पुराण, कुरान के साथ-साथ स्वामी विवेकानन्द और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का स्मरण करते हुए कहा कि सभी धार्मिक ग्रंथों और दिव्य पुरूषों के पदचिन्हों पर सेवाधाम आश्रम में जो भारतीय आध्यात्मिकता का मर्म कि ‘‘ मैं सबमें हूं और सब मुझमें है’’ तो फिर दूसरो के दर्द का अहसास होने लगता है और सेवाधाम में सुधीर भाई इसी दर्द का अहसास करते हुए सेवा कर रहे है। यह भारत देश की बुनियादी चीज़ है जो यहां बड़े पैमाने पर मानव सेवा हो रही है।
माननीय राज्यपाल ने भगवान कृष्ण जन्मोत्सव के अवसर पर कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने पूरे विश्व के लिए जो आदर्श दिए है आज उन्हें याद करने का दिन है। उन्होंने सेवाधाम के संस्थापक सुधीर भाई के जन्मदिवस एवं कृष्णजन्माष्टमी के अवसर पर कहा कि सेवाधाम आश्रम भी श्री कृष्ण के आदर्श पर चल रहा है।
इसी कार्यक्रम के दौरान जब मैं अपनी किताब ‘ मेरे आसपास के लोग ‘ माननीय राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को भेंट कर रहा था तो आदरणीय डॉ वेदप्रताप वैदिक जी ने कहा , अपनी जीवनी तो लिख ली , सुधीर भाई की भी तो लिखनी है।अब उन्हें क्या बताता कि उनकी इस देववाणी पर तो काम छह माह से चल रह है।सोचा यह था कि किताब बन जाए तब भूमिका लिखने के लिए उन्हें दी जाए। पद्मभूषण डाॅ. शिवमंगल सिंह सुमन, महामहोपाध्याय आचार्य श्रीनिवास रथ के बाद वर्तमान में वरिष्ठ पत्रकार और चिंतक डाॅ. वेदप्रताप वैदिक इस संस्था के अध्यक्ष है।
इस मानवसेवा ग्रंथ के सूत्रधार
मानवसेवी सुधीर भाई की जीवन संकल्पना का यह ग्रन्थ किसी एक व्यक्ति के जीवन का विवरण या कथानक नहीं बल्कि उसके अपने जीवन की संकल्पना और साधना का वह आइना हैं जिसमें एक मानवसेवी की यथार्थवादी पारदर्शी छवि के दर्शन होते हैं ।
इस ग्रन्थ में वर्णित तमाम प्रसंगों के प्रेरक, उत्प्रेक और सूत्रधार सुधीर भाई स्वयं हैं । ग्रन्थ की मूल चेतना में भी यही है । इस ग्रंथ का पूरा वितान सुधीर भाई नाम के 52 वर्षीय व्यक्तित्व को केंद्र में रख कर रचा गया है । यह इनके हौसलों की उड़ान का महाकाव्य है । जो जो विवरण सेवाधाम आर्काइव से मिला और जो आप बीती सुधीर भाई बताते गए वह यहां सीधे ,सरल अंदाज में कागज़ में उतरता गया । सुधीर भाई बहुगुनिया हैं । साहित्य , कला , संगीत , पत्रकारिता सब में कढ़े हैं । स्वभाव से मृदुल , विनोदी और हमेशा प्रसन्नचित्त रहने वाले हैं । भोले हैं पर समय और समाज का गूढ़ ज्ञान है । खुशदिल, खुशमिजाज सुधीर भाई के चाहने वालों की संख्या अपार है ।
इस ग्रन्थ के संयोजन और संपादन से गुजरते हुए मैने सुधीर भाई के जीवन के निश्चल और समर्पण के उन पलों को जी लिया है जो उन्होंने तिल तिल जीते हुए आज अंकितग्राम सेवाधाम जैसी संरचना को स्थापित किया है ।
सुधीर भाई सेवा और समर्पण की जीवंत मिसाल हैं । आचार्य विनोबा भावे , मदर टेरेसा और बाबा आमटे के बाद इस पथ पर का रही कौन दिखता है। इन विभूतियों के दिशा निर्देश ने सुधीर भाई का जीवन कैसे सेवाभावी बना कर अपनी मानवसेवा की परंपरा का सशक्त वाहक बना दिया ।
मेरा सौभाग्य है कि मानवसेवा के इन पदचिन्हों के दर्शन का मुझे अवसर मिला ।